दिले-उल्फत - मन का हाल गुमां - अंहकार। दिले-उल्फत - मन का हाल गुमां - अंहकार।
तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे। तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे।
तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है। तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है।
यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है। यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है।
बुद्धि, विवेक पर डालकर प्रकाश हमें पाठको के समक्ष प्रस्तुत करती है। बुद्धि, विवेक पर डालकर प्रकाश हमें पाठको के समक्ष प्रस्तुत करती है।
लोगों से बिना किसी बात के क्या उलझें , वैसे ज़्यादा कहें भी तो क्या कहें! लोगों से बिना किसी बात के क्या उलझें , वैसे ज़्यादा कहें भी तो क्या कहें!